Tuesday, August 31, 2010

आत्म - मंथन.....

निकलकर आज स्वप्नों की दुनिया से ,
               ज़िन्दगी के उस दोराह पर हूँ |
जहाँ एक ओर मेरे स्वपन ,
               और एक ओर जीवन का यथार्थ |
कल्पनाओ का साथ छूट रहा है ,
               और सत्य मेरे सामने खड़ा है |


स्वपन....  
              कितने मधुर , कल्पनाओ में उड़ान भरना कितना सुखद |


पर सत्य.....  
कितना कटु ,
              यथार्थ का सामना करना, कितना दुखद |


असमर्थ हूँ,
              जीवन  के इस मोड़ का सामना करने में |


सोचती हूँ लौट जाऊं उसी स्वपन लोक में,
              पर ये स्वपन नहीं सच्चाई है |
काश मैं न बुनती कोई स्वपन , न ही करती कल्पनाये  |
न उनसे कोई मोह होता , न उनके टूटने का गम |


जीवन सच है, स्वपन नहीं |
               ये मैंने जाना होता |
तब कर पाती सत्य का सामना,
               सत्य को स्वीकार पाती|


मेरे सामने ज़िन्दगी दोराह न होती,
काश...


काश, मैं स्वप्नों की दुनिया में खोयी ही न होती....
  


                                     "जिज्ञासा"








            

Tuesday, August 17, 2010

भावनाएँ व्यक्त नहीं होती ......

ज़िन्दगी एक किताब है , शायद..
मेरी ज़िन्दगी के पन्नो पर,
सबने लिखा जो मन में आया |


किसी ने ख़ुशी उड़ेल दी , तो किसी ने गम,
किसी ने स्याही उड़ेल,
 कुछ धब्बे अंकित करने चाहे..|


किसी ने पन्नो को फाड़,
खुद से जोड़ना चाहा  ...
मैं नादान, नासमज ...
उनके अर्थ को न समझ सकी..|


आज दिल में टीस उठती है,
काश उस वक़्त मुझे  यह अधिकार होता...


पर..
आज मेरी कलम मेरे हाथ है ,
लिख सकती हूँ,जो चाहती हूँ |
पर...
शायद , आज भी स्वतंत्र नहीं ,
कुछ दाग दिल पर लगे है...|


क्यूँ अधिकार है सबको, दूसरो से खिलवाड़ करने का...|
टीस उठती है दिल से,
पर दफ़न है दिल के कोने में कहीं...|


आज भी,
मेरी भावनाओ , कल्पनाओ का..
उन पन्नो पर कोई अस्तित्व नहीं,


क्या...,
ये सब व्यक्त नहीं होती..|


क्यूँ..,
ये सब व्यक्त नहीं होती....???


                                 "जिज्ञासा"