अक्सर हम चाँद को देख कर थोडा रूमानी हो जाते हैं, बारिश कि पहली रिमझिम फुहार में भीग कर जाने क्यूँ दिल कुछ पुरानी यादो में खो सा जाता है, समंदर की लहरें जब पैरो को छू कर जाती हैं तो जाने क्यों उसका स्पर्श दिल के कोने में दबे प्यार के एहसास को यूँ जगा सा जाता है ...।
इसी अनुभूति को अपनी कुछ पंक्तियों से दर्शाने का प्रयास किया है ...
आज देखकर इस बारिश को,
याद आया वो भीगा मौसम,
वो उस हल्की बारिश में,
तुम और हम ।
वो सुहानी शाम,
वो बहता पानी,
वो प्यार का इज़हार,
तुम्हारी जुबानी ।
वो छूकर तुम्हारा,
मुझे सताना,
इशारो इशारो में अपना,
प्यार जताना ।
वो हाथो से अपने,
मेरे बाल सुलझाना,
आँखों ही आँखों में,
सब बात कह जाना ।
हाथ थाम कर तुम्हारा,
नदी के उस छोर तक जाना,
दिल की हर बात.
बिन कहे समझ जाना ।
वो तुम्हारा स्पर्श,
आज भी महसूस होता है,
इन्ही बारिश की,
बूंदों के रूप में ।
तरस रही है ये बाहें तुम्हे,
जीवन के हर मोड़ पे ...
आँखें आज भी तलाशती हैं ,
बस तेरा ही चेहरा ।
जाने क्यूँ बस गए हो तुम,
मेरी हर ख्वाहिश में ।
दिल के इतना करीब हो ...
कि मेरा जूनून बन गए हो तुम ....
जूनून बन गए हो तुम ।।
कृति 'जिज्ञासा'
इसी अनुभूति को अपनी कुछ पंक्तियों से दर्शाने का प्रयास किया है ...
आज देखकर इस बारिश को,
याद आया वो भीगा मौसम,
वो उस हल्की बारिश में,
तुम और हम ।
वो सुहानी शाम,
वो बहता पानी,
वो प्यार का इज़हार,
तुम्हारी जुबानी ।
वो छूकर तुम्हारा,
मुझे सताना,
इशारो इशारो में अपना,
प्यार जताना ।
वो हाथो से अपने,
मेरे बाल सुलझाना,
आँखों ही आँखों में,
सब बात कह जाना ।
हाथ थाम कर तुम्हारा,
नदी के उस छोर तक जाना,
दिल की हर बात.
बिन कहे समझ जाना ।
वो तुम्हारा स्पर्श,
आज भी महसूस होता है,
इन्ही बारिश की,
बूंदों के रूप में ।
तरस रही है ये बाहें तुम्हे,
जीवन के हर मोड़ पे ...
आँखें आज भी तलाशती हैं ,
बस तेरा ही चेहरा ।
जाने क्यूँ बस गए हो तुम,
मेरी हर ख्वाहिश में ।
दिल के इतना करीब हो ...
कि मेरा जूनून बन गए हो तुम ....
जूनून बन गए हो तुम ।।
कृति 'जिज्ञासा'