Thursday, September 9, 2010

प्रारंभ...

निर्जन से इस तट पर,
             कुछ खोज रही हूँ आज,

जीवन के अनमोल क्षण ,
              वो खुशियाँ ,


फिसलती गयी मेरे हाथो से ,
              मुट्ठी में बंद बालू जैसे |


(कुछ - कुछ जीवन भी इस तट जैसा ही है ना |)


कभी होते है सुनहरे पल,
               ठीक चाँदनी में चमकती बालू जैसे,


कभी अनमोल शान्ति,
                सागर की अथाह गहराई जैसे,


सागर की ऊँची - ऊँची लहरों में,
                 कभी - कभी कोई सब कुछ बहा ले जाता है |


पर क्या ये बस समाप्ति का सूचक है......... ?


नहीं...,
                  ये नवजीवन के प्रारंभ का संकेत भी तो है |




                                                   "जिज्ञासा"