प्रेम एक अभिव्यक्ति है.... एक एहसास है, जिसके लिए भौतिक और सामाजिक विचारो का कोई मूल्य नहीं होता...प्रेम स्वछंद होता है ..जो बहते जल की तरह निर्मल, पवित्र .....वायु की तरह उन्मुक्त ...हिरन की तरह चंचल...और ज्वर भाटे की तरह उन्माद होता है....प्रेम को समझना तो कठिन है...पर इसके स्पर्श को यहाँ अपनी कुछ पंक्तियों से दर्शाने की कोशिश की है......
जब कोई इतना प्यारा लगे,
कि दिल हो जाये बेकाबू,
हर तरफ छाने लगे,
बस उसका ही जादू |
जब वो ही समाने लगे,
साँसों में तुम्हारी,
आँखों में हो कशिश,
और दिल में खुमारी |
हर वक़्त हो उससे,
मिलने कि तमन्ना,
आँखें चाहे तुम्हारी,
अनकहे कुछ कहना |
हर वक़्त उसका चेहरा,
बसा हो दिल में,
न लगे उस जैसा कोई ,
पूरी महफ़िल में |
उसकी आवाज़ को हरवक्त ,
बेताब हो दिल ,
उसी से जुडी लगी राहें,
वो लगे संगदिल |
तब समझो ...ए दिल ,
है ये वो प्यारा सा एहसास ,
जो होना ही था तुम्हे,
शायद एक बार |
इसके बिना ज़रूरत,
अधूरी तुम्हारी |
यही है..ए दिल ....,
मंजिल तुम्हारी....|
वो मंजिल तुम्हारी ...||
"जिज्ञासा"
इसके बिना ज़रूरत,
ReplyDeleteअधूरी तुम्हारी |
यही है..ए दिल ....,
मंजिल तुम्हारी....|
सुंदर रचना है......लिखते रहिये.....
aiiiii??????
ReplyDelete@sulabh : thanku :)
ReplyDelete@swati: kya hua?...
@^ haha...actually last stanza tak padhte padhte pahla ud gaya...he he...
ReplyDeleteachchhi hai yaar..tensioniyaon na..
@swati : i always luv ur comments :)
ReplyDeleteluv ya :)
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ReplyDelete@Ravi : nice lines.... :)
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ReplyDeleteHi, seriously its awesome...but kuch kuch hi samaj aaya...mujhe nahi pata tha ki tumhari hind itni aachi hai....good keep it up...
ReplyDeleteplz update ur blog asap..plz....luv to read ur poems...padh ke neend achchhi aati hai...hahahahahaha
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