Sunday, April 8, 2012

प्रेम ... एक अपरिभाषित परिभाषा ...!!


प्यार का एहसास  भी बहुत ही अजीब होता है, जितना आप इसे महसूस कर सकते हो उतना व्यक्त नहीं कर पाते, शब्दों में व्यक्त करना तो असंभव सा लगता है, फिर भी किसी किसी की आँखें बिना कुछ कहे ही सब कह जाती हैं, सब समझा  देती है । एक अजीब सी भाषा होती है आँखों की, जो शायद दो प्यार करने वालो को ही समझ  आ पाती है .. फिर भी एक छोटा सा प्रयास किया है उन्ही भावनाओ को अपने शब्दों में पिरो कर एक काव्य कृति के रूप में प्रस्तुत करने का .....



कैसे भूलूं आज का दिन,
                      वो सुहानी शाम ।
तुम आये मेरे पास,
                      थामा मेरा हाथ ।

थे मेरे करीब इतने,
                   सुन रही थी मैं ...
हर साँस की आवाज़ ।

कुछ कहा तुमने .. हौले से ,
                  या शायद मैंने सुना ।

वो था सच ,
                  या कोई सपना ।

तुम्हारी आँखों में देख,
                 वो असीमित प्यार ।

खो गयी मैं ....

 जैसे मिले सागर में नदी की धार ।

अस्तित्व डूब गया था पूरा,
                नहीं था कुछ होश ।
आँखों से बातें हुई बस,
                लब थे खामोश ।

कैसा नशा है तुम्हारा ..
               जिसका सुरूर बढ़ता जाता है ।
दिल तो अब मेरा,
                 हर हद से गुज़रना चाहता है ।

चाहती है तुम्हे ,
                 मेरी हर साँस ।
मिलता रहे मुझे,
               बस तेरा साथ ।

एक ही अर्ज़ है ,
               दूर न जाना ।

सच ..

तुम बिन तो अब,
              मुश्किल है जी पाना ।
              मुश्किल है जी पाना ।।




                                                 कृति 'जिज्ञासा'


4 comments:

  1. bolo satya narayan swami ki JAIIIIII....

    lol...


    ek saans mein padh di maine...achchhi h...abstract bhi achchha h...lol...

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  2. @surbhi : thanku bete :)
    @swati : hey bhagwaan.... thnx :P

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  3. कुछ कहा तुमने .. हौले से ,
    या शायद मैंने सुना ।

    Nice lines...shringar ras se bhari huyi...;)

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